मंथन विचारांचे
सागर यादव
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Tuesday, 30 January 2018
त्या जीर्ण पर्णाची तमा
खचितच वृक्षास नव्हती
नव अंकुराने हर्षोल्हासित
जगाची ती रितच होती
सागर
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